आज अनायास ही इम्दाद अली सर की याद आ गई । पाँचवी कक्षा में हमें वे इतिहास पड़ाते थे । जम्मू कश्मीर के लेसन पढ़ाते समय वे कुछ ज्य़ादा ही ड्रमैटिक हो जाते । डल लेक पर चलने वाली हाउस बोट्स के बारे में बताते हुए वे एकदम बेसुरे अंदाज़ में "हैय्या रे हैय्य रे हैय्या , हैय्या रे" करने लगते । उनके ऐसा करने पर हम अपने आप को डल लेक पर नौका - विहार कर रहे पाते । वो भी क्या दिन थे ...
विद्यार्थी जीवन हमारे जीवन का एक अविस्मरणीय काल होता है । हैदराबाद पब्लिक स्कूल (रामन्तापुर) में बिताए गए वो आठ वर्ष मेरे स्मृति-पटल पर आज भी ताज़ा हैं । इस ब्लॉग द्वारा मैं उन स्मृतियों को संजो रहा हूँ ।
Wednesday, January 26, 2011
-: इम्दाद अली सर :-
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