Wednesday, January 26, 2011

-: Our School Song :-

This is my second post today! After writing about Imdad Ali Sir, I googled for HPS Ramanthapur, and found this site. What's more I found my school song as well! Here goes -

God, keep this school and all who herein dwell
Safe from all harm and evil's mighty spell
Teach us to live so one and all may be
Proud of this land and man's equality
God grant that we may live in liberty


Lead us along the path of good and right
Lead us to greatness always in thy sight
All in the school who grow from year to year
May know the truth that thou art always near
And give their best without regret or fear


So in the end this school may grow in fame
All who are here may loudly sing its name
And through the years and from each day to day
May we have cause to rise and proudly say
God bless this school and all who herein dwell

-: इम्दाद अली सर :-

आज अनायास ही इम्दाद अली सर की याद आ गई । पाँचवी कक्षा में हमें वे इतिहास पड़ाते थे । जम्मू कश्मीर के लेसन पढ़ाते समय वे कुछ ज्य़ादा ही ड्रमैटिक हो जाते । डल लेक पर चलने वाली हाउस बोट्स के बारे में बताते हुए वे एकदम बेसुरे अंदाज़ में "हैय्या रे हैय्य रे हैय्या , हैय्या रे" करने लगते । उनके ऐसा करने पर हम अपने आप को डल लेक पर नौका - विहार कर रहे पाते । वो भी क्या दिन थे ...

Tuesday, December 28, 2010

-: युगारम्भ :-


दसवीं कक्षा में हमनें यह कविता पड़ी थी । गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित यह कविता मेरी मनपसन्द कविताओं में से है ।

ज्योति की तरंग उठी
दूर दूर छा गई,
सदियों की तिमिर पार
मानवता आ गई,


युग के विराट चरण
जनपथ पर गूँजते
धरती के स्वर महान्
अंबर को चूमते

पशुबल के दीपों की
रेख पड़ी झाँवरी
मिटी भयद कारा - सी
कालरात्रि साँवरी

मृत्यु के निदाघ पर
जीत गई ज़िदगी
तप्त, दग्ध, भूमि हुई
हरित पीत संदली ।

यह विकास पथ जमे
शिलाखंड घुल गए
तिमिर-घिरे जन-मन के
नए क्षितिज खुल गए

जीवन की गंगधार
कूल नया पा गई,
सदियों की तिमिर पार
मानवता छा गई

अविरल है मंज़िल यह
है न आखिरी विराम
इस प्रशस्त मार्ग चले
देश, देश, नगर ग्राम

मानव महान उठा
एक ज्योति ज्वार पर
उजले इतिहासों के
प्रथम सिंह-द्वार पर ।

अपने विरोधों से
श्रांत क्लांत था समाज
उन सहस्र पापों का
जलता है नरक आज

आदम का पुत्र बहुत
भटका अँधेरों में
चंगेज़ी न्यायों के
खून भरे घेरों में

किन्तु धरा मृत्युंजय
स्वर्ग नया पा गई
सदियों की तिमिर पार
मानवता आ गई ।